पीडियाट्रिक साइकोलॉजिस्ट, पेरेंट कोच और दो बच्चों की माँ होने के नाते यह मेरा अपना अनुभव है कि ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर अपने टीनएजर बच्चों की एक्टिविटी पर नज़र रखना बहुत ही मुश्किल काम होता है. हम चाहते हैं कि उन्हें अपनी उम्र के हिसाब से सही अनुभव मिलें और नई चीज़ों के बारे में जानने की आज़ादी हो, वहीं दूसरी ओर हमें उनकी सुरक्षा की भी चिंता होती है और हम चाहते हैं कि वे किसी जोखिम में न पड़ें. इन सब चीज़ों के बीच संतुलन बनाना एक मुश्किल काम होता है, लेकिन अच्छी बात यह है कि हमें यह काम खुद नहीं करना पड़ता. टीनएजर बच्चों के लिए सुरक्षित डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म तैयार करने के लिए, Meta लगातार अपने टूल्स को बेहतर बनाने का काम कर रहा है और इस प्रोसेस में माता-पिता की भी एक अहम भूमिका है. आपके लिए इन अपडेट से जुड़ी कुछ खास बातें यहाँ बताई गई हैं और यह भी बताया गया है कि आप अपने टीनएजर बच्चे को उम्र के वेरिफ़िकेशन का महत्व इस तरह कैसे समझा सकते हैं कि उन्हें ऐसा न लगे कि आप उन्हें लेक्चर दे रहे हैं.
मुझे पता है. जब मैं टीनएजर थी, तब मैं अपनी माँ से बातें छिपाती थी क्योंकि मुझे लगता था कि माँ उन बातों को लेकर मुझसे नाराज़ हो सकती हैं या मुझे डाँट पड़ सकती है. मैं चाहती हूँ कि मेरे बच्चों के मन में ऐसा कोई डर न रहे. इसलिए मैंने काफ़ी कोशिशों के बाद ऐसा माहौल बनाया है, जिसमें वे मुझे खुलकर कोई भी बात बता सकते हैं, भले ही वे कितनी भी पेचीदा क्यों न हों, जैसे सोशल मीडिया, प्राइवेसी और ऑनलाइन सुरक्षा से जुड़ी बातें.
जैसे, जब मेरे बच्चे ने मुझे यह बताया कि उसे एक नए ऐप पर साइन अप करना है, तब हमने साथ में उस ऐप की सेटिंग देखीं. मैंने उससे कहा कि वह प्राइवेसी कंट्रोल खुद सेट करे और मुझे बताए कि वह उस ऐप का इस्तेमाल कैसे करेगा. उसकी राय जाने बिना नियम बना देने के बजाय मैंने उससे पूछा कि "तुम्हारे हिसाब से इस ऐप के सबसे बड़े जोखिम क्या हैं?" हम यह कैसे तय करें कि इससे तुम्हें कोई खतरा नहीं है?" ऐसा करने पर उसे यह बिल्कुल नहीं लगा कि "माँ मुझे कंट्रोल कर रही हैं" बल्कि यह लगा कि "मैंने माँ को सब बता दिया है और वह मेरे साथ हैं."
टीनएज एक ऐसा दौर होता है, जिसमें कई बड़े बदलाव आते हैं और बच्चे कई चीज़ें सीखते हैं. जैसे हो सकता है कि आज वह कोई ऐनिमेशन मूवी देख रहे हों और कल सोशल मीडिया पर किसी सामाजिक मुद्दे पर बहस करने लग जाएँ. बढ़ती हुई परिपक्वता, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर दिखनी चाहिए, जैसे कि उनकी उम्र क्या है, वे सीखने के किस पड़ाव पर हैं, उसके हिसाब से उन्हें कंटेंट दिखाना, फ़ीचर उपलब्ध करवाना और वैसे ही इंटरैक्शन की सुविधा देना.
Meta ने सही उम्र का पता लगाने के उपाय लागू किए हैं, ताकि:
लेकिन यह भी एक चुनौती है: हो सकता है कि टीनएजर बच्चों से उनकी उम्र के बारे में पूछा जाना उन्हें कोई बड़ी बात नहीं लगती हो. उन्हें यह लग सकता है कि यह एक और तरह की रुकावट है या शायद उनके माता-पिता को उन पर भरोसा नहीं है. इसलिए अपनी बात को समझाने का लहज़ा बहुत मायने रखता है.
हम सभी के साथ ऐसा कभी न कभी हुआ होगा कि जब भी हम अपने बच्चे को कोई महत्वपूर्ण बात समझाने की कोशिश करते हैं, तब बच्चे इधर-उधर देखने लगते हैं, उबासी लेते हैं या अक्सर कहते हैं "मम्मी, मुझे मत समझाओ, मुझे यह सब पता है." इस तरह की बातों को आराम से समझाने के लिए यहाँ पेरेंटिंग की कुछ कारगर तरकीबें बताई गई हैं:
"तुम्हें ऐसा करना ही होगा क्योंकि यही तुम्हारे लिए सही है" यह कहने के बजाय यह बोलकर देखें:
"मुझे पता है कि सोशल मीडिया तुम्हारे लिए एक दूसरे से जुड़े रहने का एक बहुत बड़ा ज़रिया है. मुझे बस यह तय करना है कि तुम्हें अच्छे से अच्छा अनुभव मिले, ऐसा अनुभव जो तुम्हारी उम्र के हिसाब से एकदम सही हो."
इसमें नियम बनाने और नियंत्रित करने के बजाय साथ देने और भरोसा बनाने की भावना दिखाई देती है.
टीनएजर बच्चे निष्पक्षता और आज़ादी चाहते हैं. आप उन्हें इस तरह से समझा सकते हैं:
"अगर तुम अपनी सही उम्र बताओगे, तो प्लेटफ़ॉर्म पर इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि तुम्हें वही कंटेंट दिखाई दे जो तुम्हारे लिए सही है. इसका मतलब है कि तुम्हें अजीब से विज्ञापन कम दिखाई देंगे, ऐसा कम होगा कि कोई अनजान व्यक्ति अचानक से तुम्हें फ़ॉलो करने लगे और तुम यह ज़्यादा अच्छी तरह से तय कर सकोगे कि तुम्हें कौन मैसेज भेज पाए."
इससे उन्हें पता चलेगा कि उम्र का वेरिफ़िकेशन उन्हें सुरक्षित तो रखता ही है, बल्कि उन्हें और भी फ़ायदे पहुँचाता है.
टीनएजर बच्चे होशियार होते हैं. अगर वे इस बात पर ज़ोर दें कि "दूसरे लोग भी तो अपनी उम्र सही नहीं बताते हैं," तो इस बारे में उन्हें गहराई से समझाने के पहले उनकी बात स्वीकार करें:
"तुम्हारी बात बिल्कुल सही है. कुछ लोग हैं जो ऐसा करते हैं. लेकिन इन प्लेटफ़ॉर्म को सुरक्षित रखने के लिए Meta जैसी कंपनियाँ अपनी टेक्नोलॉजी को और भी बेहतर बना रही हैं, ताकि वे ऐसे लोगों को पकड़ सकें, जो अपनी असली उम्र छिपाते हैं. यह सोशल मीडिया को सिर्फ़ एक व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए बेहतर बनाने की बात है."
जब बच्चों को लगता है कि उन्हें भी अपनी बात रखने का मौका दिया जा रहा है, तब वे बात करने से झिझकते नहीं हैं, बल्कि खुलकर अपने मन की बात कह पाते हैं.
आपको अपने बच्चे की हर छोटी एक्टिविटी पर नज़र रखने की ज़रूरत नहीं है. एक-एक चीज़ देखने के बजाय, उनकी डिजिटल दुनिया से जुड़े रहकर आप हमेशा उनका ध्यान रख सकते हैं. यहाँ कम मेहनत वाले कुछ तरीके बताए गए हैं, जिनके ज़रिए आप उनसे जुड़े रह सकते हैं:
Meta अपनी तरफ़ से सुरक्षित डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध करवाने के लिए प्रतिबद्ध है. इसका मतलब यह है कि माता-पिता होने के नाते हमें अकेले ही सभी चीज़ों का हल ढूँढने की ज़रूरत नहीं है. इन विषयों के बारे में खुलकर बातचीत करके और हमारे लिए उपलब्ध टूल्स को अपनाकर हम इस बात का पूरा ध्यान रख सकते हैं कि हमारे बच्चों को ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर सुरक्षित और उनकी उम्र के हिसाब से उचित अनुभव मिले और उन्हें ऐसा भी न लगे कि यह उनके लिए कोई बोझ है.
परिचय: डॉ. एन-लुईस लॉकहार्ट, बोर्ड द्वारा प्रमाणित पीडियाट्रिक साइकोलॉजिस्ट, पेरेंट कोच और स्पीकर हैं, जिन्हें इस क्षेत्र में 20 सालों का अनुभव है. डॉ. लॉकहार्ट उन माता-पिता की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं, जिनके लिए बच्चों को तब संभाल पाना मुश्किल होता है जब वे अपने बचपन से टीनएज में आने लगते हैं. प्रैक्टिकल स्ट्रेटेजी, सही गाइडेंस और खुलकर बातचीत करने की ज़रूरत समझाते हुए, वे माता-पिता को सिखाती हैं कि झगड़ों और विवादों के बिना वे अपने टीनएजर बच्चों के साथ अच्छे और मज़बूत रिश्ते कैसे कायम कर सकते हैं. अगर आप डॉ. लॉकहार्ट के बारे में ज़्यादा जानना चाहते हैं, तो www.anewdaysa.com पर जाएँ.
आपका टीनएजर बच्चा Meta के ऐप्स पर अपनी जन्मतिथि देख सकता है या सिर्फ़ कुछ ही स्टेप पूरे करके उसे अपडेट कर सकता है. नीचे दी गई गाइड को फ़ॉलो करके यह कन्फ़र्म करने में अपने बच्चे की मदद करें कि प्लेटफ़ॉर्म पर उसकी उम्र सही लिखी हुई है.